गीता वेदों और उपनिषदों का सार है. यह एक सार्वभौमिक सभी प्रकृति के लोगों के लिए लागू शास्त्र है, सभी समय के लिए. यह उत्कृष्ट विचारों और योग, भक्ति, वेदांत और लड़ाई पर व्यावहारिक निर्देशों के साथ एक किताब है. गीता के दो सबसे महत्वपूर्ण मार्ग का सही कार्रवाई की प्रकृति और ईश्वर की भूमिका पर भगवान कृष्ण अपने भक्तों की रक्षा करने में अर्जुन को निर्देश हैं. .
” खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। इसीलिए, जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। “
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क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
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तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
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खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
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परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा–तेरा, छोटा–बड़ा, अपना–पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
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न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
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तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
- जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन–मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।
गीता सारका vedio देखने के लिये नीचे दी गई लिंक पे क्लिक किजीए।
http://www.youtube.com/watch?v=ysOk48aiBKk
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